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AVINASH KUMAR

Romance Tragedy

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AVINASH KUMAR

Romance Tragedy

नियम, क़ायदे और हम-तुम

नियम, क़ायदे और हम-तुम

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कुछ तो था

घुमड़ रहा था

मचल रहा था

बिलख रहा था


वो लम्हा

जो तन्हा नहीं

अकेला था बस

भीड़ से अलग


हर परछाई

जो बनती रही

कद बदलती रही

पराई ही रही


हालाँकि जानता हूँ

वो मेरी थी

मैं उसका ही था

पर दूरी तो थी ही एक


फ़ासला रखा

न जाने क्यूँ

हम दोनों ही ने

कि मुहब्बत बनी रहे


कुछ नियम थे

क़ायदे भी थे

ज़माने के वास्ते

पर हमारे लिए नहीं


हर पल

यूँ हुआ जैसे

जलेबी सी छनती हो

चाशनी में जैसे


इंतज़ार तो था

पर प्यार भी था

वो ख़ुदा सी रही

मैं ख़ुदाई हुआ


पिघलते हुए

ख़्यालों से झड़ते

ख़्वाहिशों के फूल थे

समेट लिए; जो बन पड़े


और फ़िर देखो

दामन मेरा ख़ाली जो था

भर गया

उम्मीदों की चाह में


थामे रहा मैं

जलती लौ की तरह

तेरी नज़रों के चराग़

कि फ़ना हुआ मेरा सब


मैं नींद में था

और जाग बैठा

तुझे छूकर ही तो

नया हुआ एक जनम जैसे


झरने सा है

निकल जाने दे

दिल बावरा हुआ है तो

अब मचल जाने दे


जो चाहे

होने दे इसे

तू बस देख ले

निगाहों को तौल कर ही


कहे देता हूँ

एक और बार फ़िर से

भूला है जो

याद आएगा कहीं से


तू चाँद है

मैं चाँदनी सा उजला

रौशनी को तो बस

ये रिश्ता बहुत है !


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