निवेदन
निवेदन
क्या है निवेदन
स्वयं से अवगत होना
समझ लेना अभिलाषा
जो अंदर से जगती है
आपको निद्रा से जागती है
कभी आप जाग जाते है
कभी आप जागना नहीं चाहते
ईश्वर की अनंत भेंट को स्वीकारते हुए
कभी आभार नहीं प्रकट कर पाए
क्यों ?
क्योंकि
इतना भाव नहीं रख पाए।
इतनी श्रद्धा उपजी ही नहीं
मन तब तक निर्भीक
था जब तक भान न था
अंत का।
जब अंत आया चिर निद्रा
में जाते जाते गीता का ज्ञान
हो गया।
सारे जीवन के कर्मकांड
व्यर्थ बस इस घड़ी जो
समझा की
ह्रदय कर रहा है
"निवेदन "
प्रभु मुझे क्षमा कर अपनी शरण में लेना।