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Rohit Kumar

Abstract Inspirational

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Rohit Kumar

Abstract Inspirational

नारी

नारी

1 min
330


ऊपर पत्थर अंदर नर्म हृदय हूँ मैं

पंचतत्वों से उपजी एक नारी हूँ I

पानी के भीतर गगरी, बाहर ज्वाला सी हूँ I


हर धर्म में सरही जाती, हर धर्म का 

मैं खिलवाड़ भी बन जाता हूँ।

अंत्येष्टि से दूर जाकर कोमल समझ

पर हर इंसान की जन्मदाता मैं ही हूँ।


वर्णन है मेरी देह संरचना

इसी संरचना के कारण कभी सती हुई,

कभी पर्दे में रही, तो कभी रेप

जनेई गया।


पर उफ़ तक न कि मैं

शायद यही वजह रही कि

मैं दोयमदर्जे के नागरिक हो गया

देवी स्वरूपा भी।


बहुत विदुषी हूँ मैं

सनातन धर्म की पूजा कर रहा हूँ

मुझे भस्म न कर पाओगे

चंदन की लकड़ी में मेरा अस्तित्व दबा


न नष्ट पाओगे

मैंने केंचुली फेंका है

अब मेरा सामना न कर पाओगे

मैं आज की नारी हूँ


मुझे फिर एक नया इतिहास लिख रहा है

मुझे राख में न दबा पाओगे 

हाँ ! जिसे मैंने ही जन्म दिया

तुम पुरुष !


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