“निर्जीव हम बन गए”
“निर्जीव हम बन गए”
बहुत नाम, नंबर
हमारे मोबाईल में सेव हैं
फेसबूक के रंगमंच पर
अनेको लोग हमसे जुड़े हैं !
व्हाट्सप्प में संख्या
अनगिनत हो गया है
मैसेंजर और वीडियो का
का भी बंदोबस्त हो गया है !
खास गिने -चुने
लोग से बातें होतीं हैं
और लोगों से कहाँ
भला गुफ्तगू होतीं हैं ?
पहले सब लोगों से
घंटों तक बातें करते थे
रात भर लाइन में
इंतजार लोग करते थे !
माँ से गप्प हुआ
बाबा से भर इच्छा बातें हुईं
गाँव के संगी -साथी
को भी बुलाकर दिल को तसल्ली मिलीं !
लोचना नौकर को
फोन पर घर के कामों को समझा दिया
माल ,जाल, बाध, गाछी
पर ध्यान देने को भी कह दिया !
“दादी के उनके घूँटने का
दवाई तेल मुंगेरिया से ले लेना ’
हम जब आएंगे
तो रुपये उनको दे देना !”
आज अपने मोबाईलों में
अनेक सिम कार्ड भरें हैं
जीओ ,एयरटेल ,बोंडा, BSNL
फोन के जाल सब पसरे हैं !
किसी को नहीं किसी से
आज यहाँ बातें हुआ करती है
अपने में ही सब सीमित हैं
पहचानने में भी मुश्किल होती है !
किसे हम कॉल करें
पहले वे नहीं इसे उठाएंगे
यदि वो उठा भी लें
तो बातें हमसे ना कर पाएंगे !
अब स्वयं निर्णय
आप कर लें हम कैसे हो गए
तुंग पर तो चढ़ चुके
पर “ निर्जीव हम बन गए ” !!