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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

“निर्जीव हम बन गए”

“निर्जीव हम बन गए”

1 min
330



बहुत नाम, नंबर

हमारे मोबाईल में सेव हैं 

फेसबूक के रंगमंच पर

अनेको लोग हमसे जुड़े हैं !

व्हाट्सप्प में संख्या

अनगिनत हो गया है 

मैसेंजर और वीडियो का 

का भी बंदोबस्त हो गया है !

खास गिने -चुने 

लोग से बातें होतीं हैं 

और लोगों से कहाँ 

भला गुफ्तगू होतीं हैं ?

पहले सब लोगों से

घंटों तक बातें करते थे 

रात भर लाइन में 

इंतजार लोग करते थे !

माँ से गप्प हुआ 

बाबा से भर इच्छा बातें हुईं 

गाँव के संगी -साथी

को भी बुलाकर दिल को तसल्ली मिलीं !

लोचना नौकर को 

फोन पर घर के कामों को समझा दिया 

माल ,जाल, बाध, गाछी

पर ध्यान देने को भी कह दिया !

“दादी के उनके घूँटने का 

दवाई तेल मुंगेरिया से ले लेना ’

हम जब आएंगे 

तो रुपये उनको दे देना !”

आज अपने मोबाईलों में 

अनेक सिम कार्ड भरें हैं 

जीओ ,एयरटेल ,बोंडा, BSNL 

फोन के जाल सब पसरे हैं !

किसी को नहीं किसी से 

आज यहाँ बातें हुआ करती है  

अपने में ही सब सीमित हैं 

पहचानने में भी मुश्किल होती है !

किसे हम कॉल करें 

पहले वे नहीं इसे उठाएंगे 

यदि वो उठा भी लें 

तो बातें हमसे ना कर पाएंगे !

अब स्वयं निर्णय

आप कर लें हम कैसे हो गए 

तुंग पर तो चढ़ चुके 

पर “ निर्जीव हम बन गए ” !!


 



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