नील गगन में जब जब बादल
नील गगन में जब जब बादल
नील गगन में जब-जब बादल करते हैं अठखेलियां
दिबारों पर नई वधू की जैसे छपी हुई हों हथेलियां।
शाम ढले दूर छितिज को प्रकृति नटी सतरंग करे है।
लगता है प्रेमी संग मिल प्रियतमा करे अठखेलियां।
चिलमन उलझन कृष्ण अलक पलकों पर आ ठहरी
उड़ता आंचल खुले वक्ष पर नयनों की रंगरेलियां।
बहुत जा चुकी कुछ बाकी है वह भी ढलती जाएगी
वर्तमान में भूतकाल की क्यों चलती हैं अठखेलियां।
जीवन संध्या रात बनेगी तिमिर जाल छा जाएगा।
जान जुदा होकर के तन से लिखती नई पहेलियां।