नेता और मत
नेता और मत
चौराहे पर कुछ भीड़ दिखी
रुका तो नेता की सूरत दिखी
एक खास अंदाज दिखा
एक दमदार आवाज सुनी।
कुछ वादे कुछ कसमें
नेता की जय घोष सुनी
चुनाव बिता नेता जीता
हार किसकी नहीं सुनी।
सड़के बेहाल,
जनता बेरोजगार
शिक्षा अपंग,
विकास की कहानी
फिर अधूरी ही दिखी।
समय कब रुका
नेता वापस किसको दिखा
फिर से जनता के बीच
नेता की सूरत नहीं दिखी।
अख़बारों में बड़े अक्षरों में नाम था
सड़कों पर शुभारम्भ का पैगाम था,
कहीं बड़े बड़े पोस्टर,
कहीं कोई घोटाले,
पर जनता की दुखी बातें
नेता ने कभी नहीं सुनी।
विपक्षी नेता ने भाषण दिया,
पहले उनकी सुनी इस बार हमारी सुनो,
हम वो सारे काम करेंगे बस
एक बार जीता दो इस बार मेरी सुनो।
सब हैं एक ही बाग़ की मूली
जनता के साथ खेलते है डंडा गुल्ली।
ना कोई वादा होता पूरा,
ना कोई नेता कभी हारा,
हार का वो दर्द अब सुना,
कौन है जनता का सहारा।
जीता वो नेता जिससे
वो हमारे ही
मत की ताकत थी
फिर क्यों भूले वो हमें क्यों लुटा
वादों की क्या उसकी नजाकत थी।
समय परिवर्तन का है
जो हमें ही करना है
इन भ्रष्टाचारियों का मुँह
काला हमें ही तो करना है।
जगाने का प्रयत्न करता हूँ आपको,
किसी नेता ने नहीं बक्शा अपने बाप को
सारा काम हमें खुद ही करना है
अपने मत का सही जगह उपयोग करना है।
लोकतंत्र में ताकतवर जनता होती है,
नेताओं के पास तो भीख की झोली होती है
हर बार वो हमारे सामने झोली फैलाते हैं
हम दान में अपना मत झोली में डालते हैं।
पर कब तक सोचो, समझो, परखो,
जो ताकत जनता के पास है
उसकी ही अब उनको तलाश है,
शायद यही बात हमारी खास है।
लोकतंत्र की ताकत जनता के पास है
बस जरूरत है तो हमें जागने की,
छोड़ दो आदत भीड़ में भागने की,
दिखानी है ताकत इन फकीरों को मतदान की।
फिर कोई हिमाकत नहीं करेगा हमें लुटने की
बस यही गुजारिश है `अप्रिय` की,
मत सुनो कसमें वादे,
सिर्फ अच्छाई और सच्चाई सुननी है,
देश के विकास की नई कहानी बुननी है।