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Jitendra Vijayshri Pandey

Tragedy

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Jitendra Vijayshri Pandey

Tragedy

नदी

नदी

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इक कहानी पढ़िये ज़रा किसी की,

आंसू ला देती है आत्मकथा नदी की।


कूड़ा-करकट हवन-कुंड, पशु धुलाई व गंदगी

स्वार्थ में डूबे इंसानों को परवाह नहीं उसकी।


व्यथित होती है आत्मा भी उसकी,

जब गंदे जल व रोगों से भरती है मटकी।


पीड़ा होती है उसे भी हर दिन,

जब इंसान ही करते सिर्फ़ अपने मन की।


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