नदी
नदी
इक कहानी पढ़िये ज़रा किसी की,
आंसू ला देती है आत्मकथा नदी की।
कूड़ा-करकट हवन-कुंड, पशु धुलाई व गंदगी
स्वार्थ में डूबे इंसानों को परवाह नहीं उसकी।
व्यथित होती है आत्मा भी उसकी,
जब गंदे जल व रोगों से भरती है मटकी।
पीड़ा होती है उसे भी हर दिन,
जब इंसान ही करते सिर्फ़ अपने मन की।
