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Ritu Agrawal

Romance Tragedy

4  

Ritu Agrawal

Romance Tragedy

यादों की धूप

यादों की धूप

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जेठ की गर्मी में पत्तों की ओट से झाँकती,

चटक धूप की एक महीन पर तीक्ष्ण रेखा।

जैसे दिल के कोने में चुभता तुम्हारी यादों का दंश।

मुझे अनायास ही यादों के गलियारे में ले जाता है।

जब इसी सुनहरी धूप के टुकड़े तले हम मिले थे

और प्रेम के पलाश चारों ओर दहक उठे थे।

हम एक-दूसरे के प्रेम की चाशनी में थे पगे।

तो फिर न जाने क्यों बढ़ गए दिलों में फासले?

अब हम क्षितिज से हो चले हैं....

जो कहीं दूर मिलते तो दिखते हैं पर मिलते नहीं हैं।

मैंने तुम्हारी यादों को अंतर्मन में गहरा दफना दिया है

और उस ताबूत को वक्त के दरिया में फेंक दिया है।

पर यह कमबख्त यादें इस धूप की रेखा की तरह

वक्त के घुप्प अंधेरे कुएँ से भी चमक जाती है

और मेरी आँखों तक पहुँचकर, पिघल जाती है।



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