भेड़ चाल
भेड़ चाल
आजकल भेड़ चाल लगी है,इस ज़माने में
लोग भेड़ मान चुके,खुद को इस ज़माने में।
कोई सोच-विचार नही चल देते पीछे-पीछे,
लोग खुद को भेड़ समझ चुके है,आईने में
बढ़ रहे है किस ओर खुद को ही पता नही,
लोग गिर रहे है,बस अंधे कुंए के घाने में
आजकल भेड़ चाल लगी है,इस ज़माने में।
पड़ोसी गर घर लेकर आया है,नई कार,तो,
पड़ोसी भी भेड़ हुआ,पड़ोसी को सताने में
चाहे लेना पड़ा कर्ज,चाहे तोड़ना पड़ा फर्ज,
भेड़ चाल में बिक रही घर-ईंटे एक आने मे
अंधेसलाहकारो की कमी नहीं है,ज़माने में।
जो ख़ुद तो गिर रहे,हमे भी लगे गिराने में
आजकल भेड़ चाल लगी है,इस ज़माने में।
स्व-विवेक को बेच चुके,व्यर्थ के दिखावे में
उनके लिये कोई कुछ क्या कर सकता है?
खुद ही दीप बुझा चुके,भेड़चाल के गाने में
लोग गिर रहे,अंधेरी रोशनी के तहखाने में
सब आतुर है,खुद को उन्नत भेड़ बनाने में
सब आतुर है,बस भेड़ो की संख्या बढ़ाने में
आजकल भेड़ चाल लगी है,इस ज़माने में।
तू खुद को दूर रख,भेड़चाल अफसाने से,
वो बनता फूल जो रहता खुद को हंसाने में
जो लगाता खुद को दूजों के पीछे चलाने में
वो हमेशा पाता है,शूल समय के आईने मे
वो ही आदमी शेर बनकर दहाड़ सकता है,
जो छोड़ देता भेड़चाल राह हर मायने में।
