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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

4  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

Tragedy

तलखियाँ

तलखियाँ

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हसरतों का आईना देखा किये 

रात दिन मेहनत से धन जोड़ा किये 

आशना मन है की काबू से बाहर हुआ 

चैन से रहने न दे कैसे जिये।  

आदतें हैं कि चादर से बाहर निकली हुई  

पैर भीतर को हमने जितने किये 

हसरतों का आईना देखा किये 

रात दिन मेहनत से धन जोड़े किये 

तलखियाँ रुस्वाइयाँ हैं बन गई 

ज़ीस्त हर कदम है अब घबरा रही 

मौसमी तन्ज़ीम भी गुर्रा रही 

और कितना ज़ुल्म ये बंदा सहे 

हसरतों का आईना देखा किये 

रात दिन मेहनत से धन जोड़े किये    

देखना अब और मेहनत हो न पायेगी 

रूह आखिर रूह है फ़ना हो जाएगी 

बेकसी का दरिया सर से ऊपर न बहने लगे 


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