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Twinckle Adwani

Tragedy

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Twinckle Adwani

Tragedy

कितने मुखोटे होते है...

कितने मुखोटे होते है...

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कितने मुखोटे होते हैं ,यह प्रश्न हिला रहा है।

ना चाह कर भी मन बार-बारदुखी हो जा रहा है।

मेरे आस-पास कुछ मुखोटे नजर आते हैं।

हंसते मुस्कुराते रिश्ते को तोड़ जाते हैं।

बीना कहे ही बहुत कुछ कह जाते हैं।


 खुद को फरिश्ता दिखाते हैं।

 तारीफों के फुल बांधकर अपनत्व बढ़ाते हैं।

 नहीं स्वार्थ कहकर स्वार्थ सिद्ध कर जाते हैं

 नहीं कमाना कहकर काम निकाल लेते है।

प्रसिद्धि की चाह नही, मगर हर दिन अखबार में आते हैं ।

मान मर्यादा में रहना कहकर,हर दिन नए रिश्ते बनाते हैं।

 बहन, बेटी ,दोस्त, दुआ, मासी ,भाई, मां कहकर

 क्या रे सच्चा प्यार किसी का पाते हैं।


 मैं प्रश्न बार-बार हिला रहा है।

 झूठ का बोझ उठाए, खुश रहकर कोई कैसे जी पाते हैं।

 आईना न देखना चाहे मगर अंतरात्मा में क्या सुकून पाते है 

 कौन सच्चा कौन अच्छा सोचकर..,कदम डगमगा रहे 

 मेरे आस-पास कई मुखोटे नजर आ रहे हैं ।

इंसान के कितने मुखोटे होते हैं

 प्रश्न बार-बार हिला रहा है।



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