STORYMIRROR

Renu Singh

Drama

4  

Renu Singh

Drama

नदी का सन्ताप

नदी का सन्ताप

1 min
350


हे भगीरथ ! सुनो,

 तुम्हारे याचना, वंदना से

द्रवित, क्षरित मैं

अवगुंठन को तोड़ 

प्रबल -प्रवाह के साथ 

निकली थी,


तुम्हारी अनुनय, विनय, प्रार्थना से 

ध्यानलीन, शान्त, स्थितिप्रज्ञ 

भोले, शम्भू महादेव ने

जटाओं को खोल

थाम लिया मेरा वेग,


उन्माद,निनाद, उल्लास, में,

मैं भागीरथी

शिव की जटाओं में 

संकुचित, सिमट

जब निकली 

तुम्हारी अनुचरी बन 

चल पड़ी 


तारने तुम्हारे पुरखे

 सगर- पुत्रों की भस्म।

हे भगीर

थ,मैंने वचन निभाया

भस्मीभूत तुम्हारे पुरखे

स्वर्गगामी हुये।


तारिणी, जान्हवी, सुरसरि बना

मेरी वलय को तोड़ 

मेरी छाती पर चढ़ 

लील लेना चाहते हैं 

मनुपुत्र।


कह दो इन्हें

हिमाचल -सुता हूँ मैं

जब प्रलयंकर रूप धर

लील जाऊंगी तुम्हारे दम्भ

मिटा दूंगी तुम्हारा अहंकार

बनाते रहोगे बांध,

पाटते बाँधते

रहोगे मेरे पाट।


कल्प भर में

जलप्लावित कर

समा लूंगी धरती को।

देखते रहना किसी पर्वत के 

उतंग शिखर से 

किंकर्तव्यविमूढ़।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama