देश काल से परे
देश काल से परे
देह गंध जब
मिल जायेगी
माटी की गंध में,
हवाओं की खुशबुओं से
एकसार हो
भीनी-भीनी
भीगी-भीगी
अनंत में जा उड़ेंगी
मेरी प्राणवायु,
मुस्कराती हुई मैं
बेचैन तुम
हर रोज़ आकाश में
अनंत में, तारामंडल में
मुझे ढूढ रहे होंगे
निहारोगे एकटक
चमकते तारा समुह
पहचान लोगे उनमें
मेरी चमक
मेरे कतरे-कतरे से
वाकिफ हो तुम
जानती हूँ
तुम्हारी बेचैनी
मेरी शांति
यही तो है
हमारा और तुम्हारा
प्रेम
देश काल से परे।
