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Renu Singh

Drama

3  

Renu Singh

Drama

मैं एक स्त्री हूँ

मैं एक स्त्री हूँ

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मां के उदरस्थ 

मुझे जिस दिन 

चीन्ह लिया गया

मुक्ति के लिए 

चले थे मुझ पर

नश्तर।


गोद से लेकर

झूले तक,

झूले से स्कूल,

स्कूल से कालेज

कितने अंकुश

कितने चाबुक।


मेरा रुदन

मेरी भीतर ही

कसकती जिंदगी

किसने समझी।

भेज दिया

उस घर,

जिस घर चाहा।


मैं मूक 

चली गई थी

नए सबेरे की

तलाश में,

कुछ सपने 

आये थे ,

सुनहरे,रंगीले,रुपहले।

अफसोस 

>

बस आंगन बदला था,

चहारदीवारी 

वैसी ही ऊँची,

अंकुश वैसे ही सख्त

जंजीरे उतनी ही बेदर्द।


डर कर सपने 

बदरंग हो

उड़ गये ।

रह गई उठती -गिरती

मद्धम सांसें।


मेरी जिंदगी के 

पहरेदारों 

क्यूँ छीन लिये तुमने

अन्तस् उजास,

छीन ली

मेरे सपनों की झपोली।


सुनो,

सपनीली आँखें

रक्ताभ

अब भरी भरी है।

रोती हूँ

खमोश।


बस बताना

चाहती हूँ

तुम हत्यारे हो।


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