दुशाले बुनती हैं, हवाएं
दुशाले बुनती हैं, हवाएं

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रुक्ष भूमि के
प्रेमी-पलाश
सिंदूरी
श्वेत, पीत
बासन्ती गीत
टांक रही कसीदे
दुशाले बुन
हवाओं की चुभन
पीत पर्णो से
भरी धरा
पुष्पित तन
हरा -भरा
अग्निवर्णा आकण्ठ
नवहरित
सज्जित पूरित
नारंगी टेसू से
वेणी वनकन्या
झंकृत हैं गीत
कोई, फूले हैं टेसू।
धूर धरा नाच उठी
फैले हैं गेसू।