यादें कुछ खोई सी
यादें कुछ खोई सी


तपती हुई रेत
कलेजे से हटायी
ठंडी,शीतल,
भीगी हुई
खुशबूदार
वो यादों की डायरी
उसके एक -एक पन्ने
जो हमने-तुमने
मिल कर लिखे थे
जस के तस
तरोताजा
एक रोज़
जब तूने
बगल की क्यारी
के खिले
देशी सुर्ख गुलाब को
तोड़,पन्ने में दबा दिया था
मुस्करा कर
देखा था आकाश को
और कहा था-
जब भी देखोगी इसे
याद रहेगी
ये बरगद की छाँव
ये चबूतरा
ये बगल की
क्यारियाँ
उनमें खिले ये
गुलाब, गुलमेंहदी,
बेला की लटें,
रातरानी की झाड़,
बासन्ती वैजंती की खुशबू
और फिर सब कुछ।