नदी हूँ..!
नदी हूँ..!
बस यूँ ही
कभी सोच लिया
करती हूँ,
नदी हूँ...!
सीमाओं में बँधी हूँ
फिर भी... ;
उन्मुक्त विचरण
कर लिया करती हूँ...।
आती हूँ...
सीमाओं पर
चूम उसको
पुनः लहरों में
खो जाया करती हूँ...।
जानती हूँ...
आसान नहीं है
नदी होना,
तपना पड़ता है,
शीतल होने के लिये
उपेक्षाओं को भी
सहना पड़ता है,
भटकना पड़ता है
यहाँ वहाँ पथरीले
राहों पर
प्रथित होने के लिए...।
फ़िर भी...,
स्वछंद विचरण
करती हूँ,
नदी हूँ...!