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Kavita Sharrma

Tragedy

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Kavita Sharrma

Tragedy

नारी

नारी

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औरत, शब्द ही अपने आप में काफी है,

ऊपरवाले की बेहतरीन कृतियों में से एक!

कहते हैं, ये मूरत है माफी की,

ऐसी सोच बसी है इसमें, जो चाहे सबका नेक।


कुछ लोग हैं, ये समाज है जो देते नहीं उसे जीने,

उसका चैन छीना हर मोड़ पर परेशानी खड़ी कर।

फिर एक कोने में बैठ वो रोती है, लगागे तकिए को सीने,

फिर छलकती हुई आंखों में रौशनी लिए पी जाती है सारे दर्द।


आखिर कार ज़िन्दगी का फलसफा होता है उसे महसूस,

फिर उठ कर हिम्मत सी ठान लेती है वो सब किनारे कर।

अपनी पहचान बनाने के सफर के दर्द से वो है अब खुश,

आखिर जीवन का असल मतलब की खोज का है ये सब्र!


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