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Ruby Prasad

Tragedy Others

3  

Ruby Prasad

Tragedy Others

नारी मन की खामोशी

नारी मन की खामोशी

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नारी की खामोशी को 

कहते है गुरूर जो

नहीं जानते कुछ

ठोकरे वक्त के

साथ साथ अपनों से 

ऐसी खाती है वो

कि लड़_लड़ के 

थक जाता है उसका मन

वक्त भी कम सितम नहीं ढाता

एक झटके में छीन 

लेता है बचपना

मूक हो जाती है तब जब

लोग उसकी हँसी को भी

साज़िश बताते है


उस हँसी को जो

पहचान थी उसकी

बाबूल के आंगन की

जान थी उसकी

हर बात में ताने

हर बात में उपदेश

सुन-सुन कर जब 

थक जाता है मन 

तब हो जाती है

वो खामोश

इन सबसे परे

ऐसा नहीं कि

यकीं उठ गया है

उसका सबसे

नहीं 

तब तो और यकीं हो

जाता है उसे

वक्त पर 

क्योंकि ठोकरे

खोल देती है उसकी आँखें


मानो कह रही हो 

कि देखो मैं बनकर 

आया

हूँ बुरा वक्त जीवन में तेरे

ताकि तुम पहचान सको 

सबके साथ खुद को भी

कर सको

फर्क अपनों में सपनों में 

हर पल

जो दुत्कार और अपमान का

तोहफ़ा देते है अपने  

उससे गहरा बहुत गहरा यकीं 

हो जाता है उसे वक्त पर

क्योंकि एक पल में जैसे बड़ी 

हो जाती है वो

वैसे ही एक पल में पता चल

जाती कीमत सच्चाई की

अच्छाई की 


त्याग की मांग की 

यकीं हो जाता है उसे कि चाहे 

कितने भी बोल ले मीठे बोल कोई 

रच ले कितने ही षडयंत्र 

बेनकाब हो ही जाते है मुखौटे 

एक न एक दिन 

तभी नहीं बोलती है वो ज्यादा 

हो जाती है खामोश 

क्योंकि 

ठोकरों से सीख लेती है 

वो करना यकीं 

वक्त के साथ-साथ 

खुद पर भी !!




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