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Bhanu Soni

Abstract

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Bhanu Soni

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नारी के नाम.... जीवन की कहानी

नारी के नाम.... जीवन की कहानी

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युगों से सुनी जा रही, 

मेरे अस्तित्व की कहानी। 

आँचल मेरा ममतामय, 

आँखों में मेरे पानी, 

मैं जीत की कहानी, 


कभी अश्कों की हुँ रवानी 

कुल-लाज का हुँ, गागर, 

मैं ओस का हुँ, पानी। 

मर्यादाओं में बंधी,

मैं कुलदर्शिनी तेजस्विनी।


अपनों के खातिर मैंने, 

अपने को भी है गवाया, 

पल-पल हुई न्यौछावर, 

प्रेम जहाँ भी मैंने पाया। 

सृष्टि हुई है, मुझसे, 


यश तुम पर मैने लुटाया, 

इतनी सरल हुँ फिर भी, 

कोई मुझे समझ ना पाया। 

स्नेह की हुँ सागर, 

मैं स्नेहनंदिनी तेजस्विनी। 


है कौनसा समय वो, 

जो मेरे लिए सही हो, 

कोई भावनाओं की कहानी, 

कभी मेरे लिए कहीं हो, 

उम्मीद का दामन थामें, 

चल रही हूँ आज भी मैं, 

कतरा भर इश्क़ का तो, 


मेरे लिए कभी हो। 

गुजर गया जो मंजर, 

गम उसका बिलकुल भी नहीं है, 

रखती हुँ, ख़्वाहिश इतनी, 

मेंरा आज तो सही हो। 

लिखती हुँ, ओज की कलम से, 

मैं ओजस्विनी तेजस्विनी। 


माना हर वक़्त दुनिया के, 

मंजर बदलते जाएंगे, 

किश्तियों की बात ही क्या, 

किनारे तक भी डूब जायेंगे, 

उस वक्त भी हौसलों की पतवार थामें ,

उभर जाऊंगी मायूसियो के तूफान से 

मैं युग बंदिनी तेजस्विनी। 


बदलते परिवेश की नव-गुँज बनकर, 

उभरी हुँ, नयी आशाओं की बूँद बनकर, 

हौसले की उड़ान भर,

दूर कही निकल जाऊंगी, 


एक किरण उम्मीद की,

कुछ कदमों के निशान, छोड़ जाऊंगी 

यादों की किताब के लिए, 

मैं मनस्विनी तेजस्विनी।


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