धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"

Drama

5.0  

धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"

Drama

नारी का सम्मान

नारी का सम्मान

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करो सम्मान नारी का निगाहों में हया रखना

समर्पण भाव को लेकर ज़हन अपना खुला रखना।

क़लम की धार से चाहे बदल देना सभी मंज़र

सदाकत जो अलग करती नहीं ऐसी दया रखना।


तुम्हारे आशियाने को सजाती रात दिन नारी

मिले समभाव का दर्ज़ा इरादा ये सदा रखना।

ज़मीनों आसमां मिलकर गुजारिश आज करते हैं

हरिक अल्फ़ाज़ को अपने जहानत से भरा रखना।


सदा मिलजुल रहें सारे तमन्ना है यही दिल की

बने क़िरदार पाक़ीज़ा लबो पे बस दुआ रखना।

सभी का दिल लुभा लेना जुदा अंदाज़ से अपने

मुसाफ़िर गीत ग़ज़लों को हमेशा तुम नया रखना।





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