नाराजगी
नाराजगी
जरा जरा सी नाराजगी, रूख पे उदासी खले हैं
राज ए वफा जो दिलबर के लफ्ज बेवफा हुए हैं
शख़्सियत की दुहाई दे रही दिल्लगी जो
राहे उल्फत में गाफिर हो चली देख वह
जरा जरा सी नाराजगी, रूख पे उदासी खले हैं
हर मंजर धुंधला सा लगे जब बेपरवाह तेरी खले हैं
हर रात तनहा सी लगे जैसे चांदनी नाराज हो रोशनी से
जरा जरा सी नाराजगी है, रूख पे उदासी खले हैं..
