ना रौंदों मेरे सपनों को
ना रौंदों मेरे सपनों को
ओ मेरे प्यारे बाबा! मैं आपकी बिटिया,
आपसे कुछ कहना चाहती हूँ ,
आपकी नाराजगी से डर लगता है,
इसीलिए खामोश ही रह जाती हूँ।
आज बात मेरे भविष्य की है,
तो चुप रहना भी मुश्किल है
कह ही देती हूँ आज,
बातें जो मेरे दिल में है,
बचपन से ही आपने हम भाई-बहन में
किसी तरह का कोई भेद न किया
अब अचानक ऐसा क्या हुआ
जो आपने ऐसा निर्णय लिया
अबाध गति से उड़ने कि जब मैंने
अपने हृदय में ठानी थी
मेरे सुकोमल परों को काटने का
आपने कैसे मन में विचार किया
पहले खुद ही सपने दिखाए थे
अब क्यों उनको तोड़ना चाहते हैं
बाबा मैैंने सपने तो देख लिए हैं
अब सपनों को पूरा करना चाहते हैं
गृहस्थी के जंजाल में अभी से मत बांधिए,
एक बार बंध गए गर हम ,
मेरे सपने भी बंदी बन जाएँगे
फिर अपनी पहचान कैसे बनाएँगे?