मूरत नहीं इंसान
मूरत नहीं इंसान
अबला नहीं सबला हूँ
मूरत नहीं इंसान हूँ
हाड़ -मांस में साँस है
हाँ ! मैं इंसान हूँ।
संजी सँवरी गुड़िया नहीं
भोग-विलास की वस्तु नहीं
अरमानों की पुड़िया नहीं
हाँ ! मैं गुड़िया नहीं ।
पढ़ी लिखी नारी हूँ
घर में सबकी प्यारी हूँ
खिलती सी क्यारी हूँ
हाँ ! मैं सबला नारी हूँ।
घर से बाहर जाती हूँ
पति की तरह कमाती हूँ
घर की शान बढ़ाती हूँ
हाँ ! मैं पढ़ती लिखती हूँ।
यह गलती अब न करना
मुझे कभी मूरत न समझना
अब तो तुमको है जागना
हाँ ! आत्मा को पहचानना।
