मुट्ठी भर रेत
मुट्ठी भर रेत


कुछ सपने भावनाएं इच्छाएं
वक्त के गलियारे में
अस्तित्व नहीं पाते है
मुट्ठी भर रेत की तरह
बिखरते चले जाते है
समय अपनी रफ्तार पकड़
रेत की मानिंद उड़ जाता है
कुछ चटक जाता है
कुछ किरच जाता है
तो कुछ बिखर जाता है
एक खामोशी का मंजर
पसर जाता है
आशा निराशा का
दरिया बहता है
रेत को फिर मुट्ठी में
क़ैद करने की कोशिश
के साथ
नई संभावनाएँ जन्म लेती है
और जीवन चक्र को
निरन्तरता मिलती रहती है ।