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Ragini Pathak

Abstract

3  

Ragini Pathak

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मुँहफट बहुरानी हूं ,मैं

मुँहफट बहुरानी हूं ,मैं

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पहचान तो गए होंगे क्योंकि हर घर मे मिलती हूं, 

कहने को तो समाजिक प्राणी ही हूँ

लेकिन हर सास ननद के दुःख का कारण हूं।

दिन भर करती घर के सारे काम सभी


ससुर जी की दवाई तो कभी सासुमां के सिरदर्द का बाम

पर कहते सब बस यही मुझे ससुराल मे रहना नही सिखाया माँ ने

शायद इसलिए आता नही मुझे।

इसीलिए मुँहफट बहुरानी हूँ

क्योंकि मुझे चुपचाप सब सहना नही आता ।।


बद्तमीज, खड़ूस, घमंडी, संस्कारहीन

जो चाहे नाम दे दो,सभी उपाधियों को

सिर आँखों पर रखती हूँ,क्योंकि मुँहफट बहुरानी हूं।

जानती हूँ घर के हर एक सदस्य की असलियत

प्यार का ढोंग दिखाते चेहरों के पीछे छिपे चेहरों की असलियत

फिर भी सभी को झुककर प्रणाम करती हूँ !


क्या करूँ... मजबूर हूँ, क्योंकि परिवार को जोड़े रखना जो है।

मातापिता के दिए संस्कार जो है

बस मुझे झूठी मुस्कान दिखाना नही आता

इसलिए मुँहफट बहुरानी हूँ 

क्योंकि मुझे चुपचाप सब सहना नही आता ।।


सासुमां को लोगों के सामने

कुटिल मुस्कान मुस्कुराते देखा है

सरेआम मेरे मायके वालों को कोसते देखा है।

फिर भी चुप रहूँ ये नही हो सकता

इसीलिए मुँहफट बहुरानी हूं 


नही आती मुझे बातो मे चाशनी घोलना

स्पष्ट बोलती हूं क्योंकि जहर का लेप लगाना नही आता

इसीलिए मुँहफट बहुरानी हूँ मैं

क्योंकि मुझे चुपचाप बिना वजह खुद का अपमान सहना नही आता ।।


क्यूँ मैं अपनी आवाज़ दबाती रहूँ ?

क्यूँ बेवजह अपनी मातापिता का अपमान सहती रहूँ ?

जो ग़लत है वो ग़लत है और गलत हमेशा गलत ही रहेगा

क्यूँ हर बार सिर झुकाए अपनी चुप्पी से हाँ मे हाँ मिलाती रहूँ ?


नही उतर सकती मैं खरी सबकी शर्तों पर

मुझे ससुराल वालों के हिसाब से रहना नही आता

मुँहफट बहुरानी हूँ मैं ससुराल वालों जरा माफ करना

क्योंकि मुझे चुपचाप रह कर अग्नि की ज्वाला में नही जलना ।।

शायद इसलिए मुँहफट बहुरानी हूँ मैं।।


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