STORYMIRROR

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

4  

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

मुखौटों की दुनियां

मुखौटों की दुनियां

1 min
305

यहां कहां मिलेंगे तुम्हें प्रेम पुष्प 

गलत राह आ गए 

ये कारोबारियों की दुनियां है 

यहां सब कुछ बस व्यापार है 

मुस्कान के भी मोल यहां 

व्यवहार में भी लाभ हानि

हाथों का मिलना, गले लगना 

सब औपचारिकताए हैं बस 

यहां न मन के मीत, न आंसुओं की कीमत 

चाहत के अंकुर, राहत के बीज 

कुछ भी नहीं यहाँ 

आह, कराह सुनेगा कौन 

अंधों, बहरों के बाजार यहां 

बिस्तर है मखमल का, नींद नहीं 

सिक्कों की टंकार है पर चैन नहीं 

सुख की नहीं, बस यह सपनों की दुनिया है 

यहां असली नहीं कोई 

सब नकली हैं 

यहां चेहरे नहीं, चेहरों पर मुखौटे हैं 

आ गए जो भूले से तो सब कुछ पाओगे 

लेकिन मुखौटों की दुनियां में 

अपने को भूल जाओगे. 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy