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Anuradha Negi

Crime Children

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Anuradha Negi

Crime Children

मुझे क्या पता

मुझे क्या पता

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हंसी खुशी में बीता था बचपन मेरा

आंगन में खेलते हो जाता था अंधेरा,

जब जब होता था एक नया सवेरा

मुझे था समाज की प्रथाओं ने घेरा।


मुझे नहीं पता था मेरा कसूर क्या है

जीवन में मेरे पास और दूर क्या है,

मैं अबोध तब क्या सोचूं क्या समझूं

इस जग में पहचान और नूर क्या है।


हर शुभ कामों से था दूर मुझे रखा 

न मेरी कोई सखी न था कोई सखा,

बहुत प्रयत्न किए आखिर क्यों ऐसा

मुझे नहीं ज्ञात यहां न कोई मेरे जैसा।


कुदरत ने ही मुझे बनाया है अनोखा 

स्वयं हूं विचित्र मैंने किसी को न टोका,

जब भी मुझे छुए हैं नन्ही सी कलियां

पल में भीतर ले जाती जैसे मैं छलिया।



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