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Neerja Sharma

Tragedy Inspirational

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Neerja Sharma

Tragedy Inspirational

मतभेद

मतभेद

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आत्मकथ्य

मैं मतभेद

मेरा विस्मयकारी मेरा नाम

किन्तु मैं देता नहीं

किसी भेद का पैग़ाम


मत + भेद से मिलकर बना 

और मैंने कहा - मत भेद करो!

पर इंसान ने कुछ और ही चुना 

और माना भेदभाव करो


मैंने नहीं कहा - भेदभाव को वरो!

रिश्तों का भंजन करो

मैंने नहीं कहा - बांटो सबको

और खुद राज करो!


गलत अर्थ के सन्दर्भ चुने

जग ने खोते कर्मों के बंध बुने

बदनाम किया मुझ को

कब मेरे अंतर के अर्थ गुने?


समझाया मैंने बहुत,

मानव नहीं मानने वाला

अपना ही अर्थ लगा 

मेरे अंतर का वध कर डाला


अब तेरा कमाल, मेरा मलाल -

बदनाम हुआ मैं सभी हाल

जो कहा मैंने, उसका उल्टा ही किया,

प्रति क्षण, दिवस और साल


पराए तो पहले ही बंटे हुए,

अपनों को भी अलग किया

मेरी निर्मल परिभाषा को

कर दूषित इंसान जिया

 

अब मुझे बुराई कहो,

नाम मेरे मन भेद सहो

मैंने तो चाहा था

जग में सब मिल कर रहो


यह संभव करो और

सोच अपनी बदलो

गिरा दो भेद भाव की दीवारें

और समता की ममता में ढलो!


मत रखो, वैचारिक निर्णय लो,

छोड़ भेद-भाव, अपना रूप रचो

मुझ को भी आदर दो,

दुर्गुण से स्वयं बचो!



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