मोहब्बत को विदा किया
मोहब्बत को विदा किया
अपने हाथों से ही,
अपनी मोहब्बत को विदा किया
हाय रे ! किस्मत खुद से ही,
जिंदगी को रिहा किया
कैसी वो घड़ी थी,
जहां अनगिनत सवाले घेरी थी
मेरी चाहत मुझसे लड़ी थी,
भाग जाने को संग कही थी
लेकिन, फिर मैं खुद में ही उलझ गया,
अपनी मोहब्बत को मंडप छोड़ गया
एक समाज फिर मेरे अंदर आ बैठा,
हृदय का संगीत को मौन किया
अपने हाथों से ही
अपनी मोहब्बत को विदा किया !
अब एक सूरज आसमान में,
जलता हैं . .
प्रकाश सभी को देता हैं,
लेकिन खुद में ही तन्हा रहता हैं. .
उगना डूबना अब रोज की आदत हैं,
मोहब्बत की लालिमा अब क्षणिक हैं . .
अपने हाथों से ही,
अपनी मोहब्बत को विदा किया !
आज एक चाँद नभ में चमकती हैं,
पर न जाने शुक्ल कृष्ण पक्ष में रहती हैं
अपने इश्क की याद में घटती बढ़ती रहती हैं,
उस सूरज के इश्क़ की प्रकाश से जिंदा रहती हैं
उसके इश्क़ की यादें ही रात को चाँदनी बनाती हैं,
पर, तब भी उसके चेहरे पर छाही दिख जाती हैं
अपने हाथों से ही,
अपनी मोहब्बत को विदा किया !

