मोहब्बत की ये रस्में...!
मोहब्बत की ये रस्में...!
वो ज़ुल्म-ऐ-सितम हमपे....
ढाये जा रहें हैं....
मोहब्बत कि ये रस्में...
हम निभाये जा रहें हैं...!
टूटकर बिखर गये होते....
सूखे पत्तों कि तरह....
बसंत-बहार बनके मेरी ज़िन्दगी में....
वो आये ना होते....!
हमें दिल से लगा के झूठी कस्में....
वो खाए जा रहें हैं....
वो ज़ुल्म-ऐ-सितम हमपे....
ढाये जा रहे हैं....
मोहब्बत कि ये रस्में....
हम निभाये जा रहें हैं...!

