मोहब्बत और तुम
मोहब्बत और तुम
हमारी मोहब्बत की
रूहानियत तो देखिये
दूरी इन्च इन्च खलती है,
और इसमें बदन का
कोई काम नहीं है
ये मेरी रूह है जो
तुझे पाने को मचलती है।
वैसे ऐसा मैंने कुछ सोचा नहीं है
तुम ही काफी हो
फिर भी चलो मान लेते हैं,
कि मैं बाप बना और बेटी हुई
तो भी पहली बेटी कहलाने का
हक़ सिर्फ तुम्हें रहेगा।
मैंने सोचा ना था कि
मोहब्बत करना सीख जाऊंगा
जिस्म की ईमानदारी पर शक था
अच्छा हुआ तुम आ गयी
मेरा भ्रम मिटाने के लिये।
अब भी कभी कभी
वो बेईमान जागती है
पर शुक्रिया
उसे मासूमियत से
सुलाने के लिये।
इश्क़ इतना बड़ा जुल्म है
मैं करने से डरता था
कि कहीं बेड़ियां ना बंध जाये
मगर एक बार फिर शुक्रिया
आसमान दिलाने के लिये।
कभी कभी जब मन खिन्न होता है
मेरा और तुम्हारा
बहुत सी बातें सोच जाता हूँ
और यहां तक कि
अपनी अकेली दुनिया
बसाने लगता हूँ,
मगर आज मैं अकेला हूँ
तो ऐसा लग रहा है जैसे
कोई दीया सूख गया हो
और लौ जल रही हो।
जिन्दगी बस पूरी है
समझने की बात है
मगर मैं अभी अधूरा हूँ
क्यूंकि नासमझ हूँ,
मुझे कोई तो चाहिये
अपने खाली पन को
मिटाने के लिये,
मैंने सब आजमाया
सिनेमा, व्हाट्सएप,
फेसबुक, इंस्टाग्राम
और तुम्हारा जिस्म,
पर मैं सिर्फ तुमसे और
सिर्फ तुमसे पूरा होता हूँ
तुमने मौका दिया
भीतर उतरने का,
और मैं उतर गया
उतरा की तुमसे
मुलाकात होगी
पर मैं खुद से मिल गया।
एक बार फिर शुक्रिया
एक बार फिर शुक्रिया।

