मोह-माया
मोह-माया
दिवाना बना हूं मोह-माया का मै,
छोड़ना चाहता हूं, छूटती नहीं,
दिन प्रतिदिन डूबता ही जाता हूं,
कब बाहर निकलूंगा मालूम नहीं।
दौड़ रहा हूं धन प्राप्ति के लिये मै,
भूख धन की खत्म होती ही नहीं,
निती से मिले या अनिती से मिले,
वह कभी भी मैने सोचा ही नहीं।
सुख की जींदगी जीना चाहता हूं मै
विचार का अमल कर सकता नहीं,
खूदा का सुमिरन करना चाहता हूं,
सुमिरन का समय मिलता ही नहीं।
मनकी शांति के लिये भटकता हूं मै,
मन मेरा शांत कभी रहता ही नहीं,
"मुरली" तेरे शरण आया है ओ खूदा,
तेरे बिना अब मेरा कोई सहारा नहीं।