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Dr J P Baghel

Tragedy

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Dr J P Baghel

Tragedy

मनु का पूत

मनु का पूत

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हुआ है निष्ठुर मनु का पूत,

ध्वंस की जारी है करतूत !


धरा का घायल हुआ शरीर,

गगन में बिंधे आधुनिक तीर ।

सृष्टि में उथल-पुथल मच रही,

जगत की बिगड़ रही तस्वीर ।

चकरघिन्नी-सा है बे-हाल,

चढ़ा सिर पर विकास का भूत ।

ध्वंस की जारी है करतूत !


वन्य-जीवन का कर संहार,

बढ़ रहा मानव का परिवार ।

हो रहे लुप्त पिघल हिम-सिंधु,

धुंए के नभ तक उठे गुबार ।

विश्व पर है विपत्ति आसन्न, 

प्रलय होगा मानव आहूत ।

ध्वंस की जारी है करतूत !


हुई पशुता, जड़ता असहाय,

नहीं जीने के बचे उपाय ।

यही है क्या मनु रीति-विधान 

और मानवता का पर्याय ?

न जाने क्या देगा संदेश,

दौड़ कर मानवता का दूत ?

 ध्वंस की जारी है करतूत !

        


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