कभी तो मैं भी बनूँगा शबनम से शोला। कभी तो मैं भी बनूँगा शबनम से शोला।
तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे। तभी हम कोरोना को हराकर, हँसी खुशी ये जीवन बीता पायेंगे।
तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है। तभी एक आवाज मेरे कानों में आती है अजी सुनते हो कपड़े धोना भी बाकी है।
यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है। यह मिट्टी का मटका भी अमृत कलश बन जाता है।
भूलकर सभी राग -द्वेष हो अहिंसक समाज की संरचना। भूलकर सभी राग -द्वेष हो अहिंसक समाज की संरचना।
अलग अलग कल्पों में प्रभु ने विभिन्न रूप किए हैं धारण स्वम्भू मनु और शतरूपा भी थे अलग अलग कल्पों में प्रभु ने विभिन्न रूप किए हैं धारण स्वम्भू मनु और शतरू...