आह्वान गीत - नीरज चौहान
आह्वान गीत - नीरज चौहान
प्रेम के तू गीत छोड़
भर तू अब ऐसी हुंकार
प्रस्तर शिला भी चूर हो
कुछ यूं हो तेरा प्रहार
जात- पात हिंसा का दानव
लील रहा समस्त समाज
अधर से हटाकर वंशी
रण का शंख बजा तू आज
सत्य ,अहिंसा और प्रेम
मनु की सीख, मानवता का अंश है
क्या करें फिर कृष्ण यदि सामने
हिंसक -प्रवृत्ति का कंस है
शांति न्याय व समानता का
धवल -ध्वज फहराना है
दानव से फिर मानव का
शक्ति संग्राम कराना है
असहाय- सी धरा ब्रह्मा की
कर रही है याचना
भूलकर सभी राग -द्वेष
हो अहिंसक समाज की संरचना।
