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Dhanjibhai gadhiya "murali"

Drama Classics

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Dhanjibhai gadhiya "murali"

Drama Classics

मनका मोर

मनका मोर

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छेल छबिली मै हुं बलमा,

तुं है मेरे मनका मोर,

साँवरी सूरत, मोहिनी मूरत,

लगती है मुज़े अनमोल। 


मन मंदिरमें आकर मुज़को,

सताता है तुं चित्तचोर,

तेरी छटा है ऐसी निराली,

दिलमें मचाता है शोर।


नटखट नटवर त् त् थै नाचकर,

बहाता है प्यारका धोध,

छेल छबिली मै हुं बलमा,

तुं है मेरे मनका मोर। 


तेरे बिना मै नहीं रहे पाती,

मिलनकी तड़प करे ज़ोर,

भान भलाती है तेरी"मुरली"

क्युं बज़ाता है घनघोर।


बनी हुं तेरी प्रेम दिवानी,

ज़ोड़ दे प्यारका दोर,

छेल छबिली मैं हूँ बलमा,

तुं है मेरे मनका मोर। 


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