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Bhawna Kukreti

Abstract Drama Tragedy

4.1  

Bhawna Kukreti

Abstract Drama Tragedy

पूछता है मन

पूछता है मन

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एक सच जो

मन ने करीब से जिया हुआ है

समझा-बूझा हुआ है

फिर भी अबोध होकर

पूछता रहता है हर मृत व्यक्ति से

देख कर उसकी शवयात्रा

कि आखिर मर कर

मार क्यों गए ?

क्यों अपने

बिछोह की पीड़ा

पीछे छोड़ जाते हैं लोग

वो भी उन पर

जो डूबे होते है

उनके मोह में पूरी तरह

क्यों उनको महसूस नहीं होता

वो दर्द

जो वे गाड़ जाते हैं।


उनके मन पर जाते हुए

अपनी अंतिम

न लौटने की यात्रा पर

जिसमें उन्हें स्वयं तो समा जाना है विराट में

पूरी कर लेनी है अपनी यात्रा

मगर उनके दिए असह्य दुख को

मन पर संजोए चलने वाले

उनके अपने पीछे छूटे लोग

चलते ही रहेंगे अंदर ही अंदर।

भूलभुलैया सी राहों पर

वे अक्सर ही काठ से दिखते हुए

छिपकर भीगते हुए आंसुओं में

वे टटोलेंगे जीवन भर स्मृतियों में

उनका स्पर्श, स्नेह

और आभास।

पूछता है मन

अबोध बनकर अक्सर

मार क्यों जाते हैं लोग

खुद मर कर।


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