रेशम का टुकड़ा
रेशम का टुकड़ा
कहने को तो आँचल है
एक रेशम का टुकड़ा,
उसमें छिपा है औरत का
जीवन भर का दुखड़ा।
माँ का आँचल बन जाता है
ठंडी छांव जीवन की,
माँ सिखाती आँचल होता है
इज्जत अपने घर की।
आँचल लगाता है सुंदरता में चार चाँद,
लग ना जाए गलती से इसमें कोई दाग।
बहू बन कर लड़की जाती जब ससुराल,
वही आँचल बताता है उसका हाल।
सिर से जरा सा जो सरक है जाता,
ससुराल में तूफान खड़ा हो जाता।
पिया को यूँ भाता उसका आँचल,
जैसे नैनों में बसा हुआ काजल।
जो बचपन गुजारा माँ के आँचल तले,
आज खुद माँ बन वही आँचल है देती
अपने बच्चों की पलकों तले।
हर औरत की होती है बस यही कामना,
लूँ विदाई दुनिया से बनकर सुहागन
और ओढूँ आँचल फिर वही सुहावना।