दास्ताँ
दास्ताँ
मिजाज यूं इस कदर है कि
मुहब्बत करते भी हैं और बता भी नहीं रहें
निशाने ए सजदा करते है उनको
बस अपने लफ्जो में बता नहीं रहें।
इश्क की किताब के हर पन्ने में
उनका नाम लिखा हैं
इस गलती के हम उनको गुनहगार बना नहीं रहें
फासला रख कर हम उनसे कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहते
एहमियत देकर भी हम उन्हें बता नहीं रहें
हर बरसात की बूंद में आप का एहसास लगा रहता हैं
बस हम इस एहसास को बता नहीं रहें
इस दुनिया के सामने तन्हा से बन कर रह गए हैं
बस हर एक को अपने दिल का हाल सुना नहीं रहें।
न जाने लोग हमें शायर क्यों कहते हैं
हम तो वो लिखते हैं जो आप को बता नहीं रहें
सुकून तो मिल जाता है आपको देखकर
बस हम अपने अधूरे दिल की दास्ताँ सुना नहीं रहें।