मंजिल
मंजिल
सरिता का मंजिल सागर है
राहों में बहुत रूकावट है
फिर भी मिलने की चाहत है
जंगल , पहाड़ या हो पठार
निर्झरनी को कौन रोका है
मिलन उसका तो होना है
प्रेम है उसका पत्थर सा
कर्पूर नहीं जो उड़ जाएगा
फिजाओं में घुल जाएगा
सिला है अनमोल वफाओं का
ये बंधन है दो आत्माओं को
सरिता का मंजिल सागर है
मिलन होना तो वाजिब है
बीच खड़े हैं दुश्मन की सेना
बिछा रखा है बारूद घनेरा
लांध कर आगे जाना है
इस पार उसे बुलाना है
एक जश्न मुझे मनाना है
घर आंगन को सजाना है
सरिता का मंजिल सागर है
राहों में बहुत रूकावट है ।