मनाली की ठंडक
मनाली की ठंडक
यह बात है जून 2013 की, जब मैं अपनी वाइफ शिल्पी और बेटी आंचल सहित गर्मियों की छुट्टियों का आनंद लेने मनाली गया था। ट्रेन द्वारा पहले हम अपने शहर शिकोहाबाद-उत्तर प्रदेश से चंडीगढ़-पंजाब पहुंचे, वहां पहुंचकर हमने ट्रैवल एजेंसी से एक कार हायर की जिसका आने और जाने का पैकेज था, उस कार का ड्राइवर हरप्रीत काफी मिलनसार था लेकिन गाड़ी बहुत तेज चला रहा था जिस कारण पहाड़ियों की वादियों का आनंद लेने की बजाए डर लग रहा था,बीच-बीच में कहना पड़ता था, "भाई गाड़ी धीरे चलाओ" उसके बाद 2-4 किलोमीटर तक तो वो सही चलाता था फिर गाड़ी को तेज चलाने लगता था फिर हमने कहना ही छोड़ दिया दरअसल किसी वाहन से पहाड़ी रास्तों पर अत्याधिक तेज चलना बहुत ही डरावना होता है।
खैर, जैसे-तैसे करके मनाली पहुंचे, लेकिन जब पहुंचे तो पता चला कि जिस पैकेज के अंतर्गत होटल का रूम बुक कराया था वह उपलब्ध नहीं है। अब एक नई समस्या सामने थी; रात के 10:00 बज चुके थे, फिर काफी देर बाद संबंधित ट्रैवल एजेंसी द्वारा दूसरे होटल में कमरा उपलब्ध कराया गया तब जाकर राहत की सांस ली।
सुबह 8:00 बजे उठकर हमें मनाली भ्रमण पर जाना था, इसलिए खाना खाकर जल्दी सो गए; दूसरे दिन 6:00 बजे उठे और नहा धोकर 7:00 बजे तक हम तीनो लोग तैयार हो गए और फिर निकल पड़े रोहतांग पास की पहाड़ियों की ओर, रास्ते में होटल में लंच किया और फिर यात्रा प्रारंभ कर पहुंचे मणिकरण गांव। वहां पर कार से आगे जाना मना था,इसलिए घोड़ों पर सवार होकर एक ऊंची बर्फीली पहाड़ी पर पहुंचे। हम सबके लिए वह पहला मौका था घुड़सवारी करने का इसलिए घोड़े पर बैठकर बैलेंस बनाने में काफी मुश्किल हो रही थी। क्योंकि पहाड़ी के ऊपर की ओर जा रहा था घोड़ा इसलिए घोड़े की पीठ से पीछे गिरने का डर लगा था, लेकिन हम तीनों लोग एक दूसरे का हौसला बढ़ा रहे थे, और अंतत हम लोग उस गंतव्य तक पहुंचे जहां स्कीइंग बगैरह होती है। उसके बाद हम लोग शुरू हो गए स्कीइंग का आनंद लेने और खूब फोटोग्राफी की बहुत ही आनंद आ रहा था। जैसे ही हम लोग आनंद की चरम स्थिति पर पहुंचे वैसे ही बूंदाबांदी शुरू हो गई और इस बूंदाबांदी के कारण ठंड इतनी बढ़ गई कि कंपकंपी शुरू हो गई फिर तो वहां आनंद की जगह वापस जाने का मन करने लगा, तब तक नजर गई एक अधेड़ महिला कोमली की तरह जो गरम-गरम टमाटो सूप बेच रही थी। हमने उसे अपने नजदीक बुलाया और 3 कप फुल टमाटो सूप देने के लिए कहा तो उसने टमाटर सूप का एक कप ₹100 में दिया, ठंड लग रही थी इसलिए पीना पड़ा लेकिन विक्रेता कोमली की भी कोई गलती नहीं थी। वह भी क्या करे?मौसम उनके लिए भी उतना ही खतरनाक था जितना हम सबके लिए और उनकी रोजी रोटी का मामला था, हमें तो इस बात की खुशी हुई कि उन्होंने ऐसी चीज उपलब्ध करा दी जिससे हमें बहुत आराम मिला और जैसे ही हम सूप पीकर फ्री हुए हमें वापस ले जाने के लिए घुड़सवार भी घोड़े लेकर आ गए । हम फिर वापस पहुंचे होटल,जहां जाकर कपड़े बदले क्योंकि किराए पर जो कपड़े लिए थे बर्फीले क्षेत्र में जाने के लिए वह कपड़े उपयोग के लायक नहीं थे। बारिश होने पर उसमें अंदर पानी चला गया था, जिस कारण वापस आते समय भी कार में बैठकर बहुत तकलीफ हुई।
"इन सब तकलीफ में भी हम तीनो लोग पूरे रास्ते इंजॉय करते हुए आए क्योंकि मकसद यही था कि हमें इंजॉय करना है।"
दूसरे दिन सुबह उठकर हम हिडिंबा मंदिर गए वहां जाकर हिडिंबा देवी के दर्शन किए, बहुत ही अच्छी जगह है अर्थात रमणीक जगह! जब हम घटोत्कच तपस्या स्थल की ओर जा रहे थे तभी फिर से बारिश शुरू हो गई और पहाड़ियों पर फिसलन शुरू हो गई इस कारण वापस फिर होटल आना पड़ा, कुछ देर होटल में रुक कर बाहर निकले और पहुंचे व्यास नदी के किनारे, वहां आनंद लिया बंजी जंपिंग का और इस प्रकार से गर्मियों की छुट्टियों का खूब आनंद लिया मनाली जाकर, एक हफ्ता मनाली में छुट्टियां बिताकर वापस अपने घर आ गए।
वह आनंद के क्षण अभी भी याद दिलाते हैं, लगता है काश फिर से वही दिन आ जाएं फिर से देश में सब कुछ सामान्य हो जाए, सभी निर्भय होकर गर्मियों की छुट्टियां बिताने फिर से मनाली जैसी जगहों पर जाएं।
