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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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मन मेरे !

मन मेरे !

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मन मेरे, मन मेरे,

अब तो तजि दे कुसंग,

काम -क्रोध - मद - मोह

लोभ मिलि, विरत कियो सत्संग


जो संगति पा धूल वायु की,

उड़ी पहुंचे आकाश,

पुष्प चमेली संगति पा

जस फैले गंध सुबास

मैल जलज संग - साथ में बहि - बहि,

तू, झेल रहा क्यों दंश


संग का रंग बराबर चढ़ता,

कौन इसे ना जाने,

दुर्जन के संग काम

क्रोध को कौन नहीं पहचाने

चन्दन विष ब्यापत नाहीं कितनौ,

लिपटे रहत भुजंग


मन मेरे, मन मेरे,

अब तो तजि दे कुसंग

काम - क्रोध - मद - मोह

लोभ मिलि, विरत कियो सत्संग।


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