मन की फाँके
मन की फाँके
चल चंचल मन अब चल तू चल,
ले चलता तुझे अँधेरो में।
तू क्यों भटके किसकी खातिर,
हर शख़्स यहाँ नाखुश दिखता।
तू देख लिया जग की धारा,
तूने देखा खुशियों के पल।
तू रोया देख दुखो को जब,
तब दुनिया से तू क्यों हटता।
चल चंचल मन अब चल तू चल,
जीवन की सरिता भीतर है।
बाहर जो गया तो बह जायेगा,
भीतर देख तू क्या पायेगा।
चल भीतर तुझे दिखाता हूँ,
राधा से तुझे मिलाता हूँ।
तू सबको देख मचलता है,
क्या मेरी तुझको खबर नहीं।
चल चंचल मन अब चल तू चल,
खुद से तुझे आज मिलाता हूँ।
तू क्यूँ मुझको भरमाता है,
पथ मार्ग मेरे बिसराता है।
चल तुझे हकीकत दिखलादु,
चल चंचल मन अब चल तू चल।
रिश्ते नाते सब स्वार्थ में हैं,
प्रेम के नाम में कितना छल है।
तू क्यू चाहे इनको पाना,
इन खुशियों के कुछ ही पल है।
तू क्या मुझको दिखलाता है,
क्यू मुर्ख मुझे बनाता है।
चल सच को देखने की हिम्मत कर,
चल चंचल मन अब चल तू चल।
बचपन खाया तूने मेरा,
खाने को खड़ा जवानी को।
वह बचपन था कुछ कह ना सका,
अब देख तू मुझसे जिद ना कर।
तूने तो सुख की आशा में,
कितनी पीड़ाएँ मुझको दी।
हर बार तेरी धुन सुनता गया,
तेरे पथ पर मैं चलता गया/
चल छोड़ तुझे दिखलाता हूँ,
तूने कितना उत्पात किया।
कभी बन बैठे तू सज्जन जन,
कभी बर्बरता की हद तोड़े।
चल आज तुझे दिखलाता हूँ,
निज जीवन को दिखलाता हूँ।
चल चंचल मन अब चल तू
चल ले चलता तुझे अँधेरों में।
