मन का पिंजरा
मन का पिंजरा
जब कभी मन,
व्यथित होने लगे,
खोल देना,
मन की हर गांठ,
जो बंधी है,
मोह के पिंजरे से,
व्याकुलता जब,
खूब सताने लगे,
तब पंख खोलना अपने,
और देखना,
खिड़की के बाहर,
मत समेटना,
मन के घाव,
भरने देना,
हल्का होकर
मन तन्हाइयों की,
कैद से निकलकर,
दूर तक की,
यात्रा करके आना
महसूस करना सौंधी,
खुशबु माटी की,
पंछियों का कलरव ,
बहती पवन की सांय,
झोरोखे से निकलकर,
उड़ने देना खुद को,
खुले आसमां में,
किसी बाज़ की तरह,
नज़र रखना अपने,
अस्तित्व पर,
अकेले ही सही,
पर ऊंचाई की परत,
को भेद कर,
उड़ जाना मन,
तुम तन्हाई के,
पिंजरे को,
खोलकर.......