मन का खेल
मन का खेल
1- ठिठक खड़ा मैं हुआ,
सामने वह जब आया।
भूत प्रेत सा लगा,
देखकर उसका साया।।
2- चीख निकलने वाली थी कि ,
मन सुमिर पवन सुत आए।
आनन फानन मंत्र सिद्ध सा,
बिपदा दूर भगाए।।
3- जब जब ऐसा लगा बाद में,
भूत पिशाच निकट में आएं।
किसी यंत्र स्वचलित सा होकर,
हनु चालीसा सुनाएं।।
4- भय से मुक्ति मिलेगी सबको,
नव ऊर्जा मिलती है तन को।
मन का ही सब खेल ये समझो,
विकसित कर अपने जीवन को।।

