रंगमंच
रंगमंच
एक महानाटक चल रहा है
ज्वालामुखी जैसे जला
भारत ही रंगमंच है
ब्रह्म, व्यास, वाल्मीकि भी
इसी तरह नहीं लिखा।
चिल्लाने के सिवा
बिना आशय हुए अभिनेताएँ
रंग और हंग के सिवा
शुद्ध वाक केबिना गुए
नेताएँ और अभिनेताएँ
विरोद ही करतेहै लेकिन
शुद्ध आत्मा नही है
मंच पर कहना एक है और
आचरण में और एक हुए
राजनेताएँ चलाते हैं
एक महा नाटक
कितने वर्ष चलेगा
ये भ्रष्टाचार
नहीं चलेगा अब युवा तो
जागृत है अब कोई भी नहीं
सोते है नहीं चलेगा नहीं चलेगा
ये महानाटक।