मन घट टूटा ही करते हैं।
मन घट टूटा ही करते हैं।
मृदु माटी के बने हुए
मन घट टूटा ही करते हैं।
कच्चे धागे से बुने हुए
गर नेह से न सने हुए
स्मृतियों के सुन्दर क्षण भी, विस्मृत हुआ ही करते हैं।।
मन घट टूटा ही करते हैं।।
कन्दुक सा ये लघु जीवन
उसमें धैर्य अछूता मन
प्रायः मझधार से निकलकर भी, हम डूबा ही करते हैं।
मन घट टूटा ही करते हैं।।
शुद्ध सरस जीव तरु को
हैं सींचते गर सशंकित हो
खिल के सुन्दर पुष्पों से भी, दुर्गंध ही छिटका करते हैं।
मन घट टूटा ही करते हैं।।
मृदु माटी के बने हुए
मन घट टूटा ही करते हैं।।