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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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मन भरा नहीं

मन भरा नहीं

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दोस्त फुरसत हो तो मेरे ख़यालों के घरौंदे पर

अपनी एहसास का कंकर फेंकना।

मेरे ना नुकुर के बावजूद बाहें पकड़

घसीट लेना बुढ़िया तलैया तक।


फिर रिश्तों के ठहरे तालाब में

यादों के कंकर फेंक अपलक देखेंगे

वृताकार लहरों को अंतिम छोर तक।


बिना कारण, इधर उधर की हाँकेंगे

तोता उड़, मैना उड़ और गधा लोट करेंगे।


कौआ जुटान के विषय पर परिचर्चा होगी

कभी तुम रूठना औऱ मेरी विजयी हार होगी।

गोधुली बेला में 


चिड़ियों की चहचहाहट

और बैलों की घंटी की धुन पर 

लौट जाएंगे वर्तमान में।


आज भीड़ में भी अकेला हूँ तेरा क्या हाल है

मन में भरा है लेकिन मन नहीं, सब बेहाल है।



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