ममता
ममता
वो आंगन की धूप सुहानी
वो परियों की राम कहानी
वो पनघट पर भरे गगरिया
देखे एक टक खोल किबरिया
है उसकी बंदी चंदा सूरज
मटक मटक के रचती गोरज
वो खुद भूखी रह मुझे खिलाती
अपने आँचल में मुझे सुलाती
वो करती है जगत की रचना
काल न कर सके उसकी गढ़ना
जिसने मुझपर है प्यार लुटाया
जिंसके आँचल में जगत समाया
ईश्वर की धरती पर समता को
नमन करे हम सब ममता को
नौ माह जिसने कोख़ में पाला
निज ख़ू का देकर मुझे निबला
अरे अपना जीवन भूल गई वो
जिसने हर दम मुझे सम्भाला
सिखलाई जो उस मानवता को
नमन करे हम उस ममता को।